दिवाली की रोशनी के बाद धुंध का साया: दिल्ली-NCR फिर बना ‘गैस चैंबर’

Delhi Pollution: दिवाली का उत्सव-खुशी, एकजुटता और रोशनी का प्रतीक है। लेकिन जैसे ही यह भव्य उत्सव समाप्त होता है, उत्तर भारत का एक बड़ा हिस्सा, खासकर दिल्ली और उसके आसपास का इलाका, एक अलग ही अंधेरे में डूब जाता है -यह अंधेरा है दम घोंटने वाले स्मॉग और खतरनाक प्रदूषण का। हर साल यह पैटर्न दोहराया जाता है: उत्सव की रात, और अगली सुबह, शहर एक ‘गैस चैंबर’ में बदल जाता है।

सवाल यह नहीं है कि ऐसा क्यों हुआ, बल्कि यह है कि हर साल यह जानकर भी हम इस चक्र को क्यों नहीं तोड़ पा रहे?

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Delhi Pollution: समस्या की जड़

प्रदूषण के इस खतरनाक स्तर के लिए किसी एक चीज़ को दोष देना गलत साबित होगा। यह एक जटिल समस्या है जिसके कई कारन हैं:

पटाखों का योगदान: प्रतिबंधों के बावजूद, दिवाली की रात खासकर लक्ष्मी पूजा के दिन भारी मात्रा में पटाखों का इस्तेमाल होता है। इनसे निकलने वाला धुआँ और महीन कण (PM 2.5 और PM 10) तुरंत हवा की गुणवत्ता को बदतर बना देते हैं।

पराली जलाना (Stubble Burning): पंजाब और हरियाणा जैसे पड़ोसी राज्यों में खेतों में पराली जलाने की घटनाएँ इसी समय चरम पर होती हैं। हवा की दिशा इन धुएँ को सीधे दिल्ली-NCR की ओर धकेल देती है।

मौसम और भूगोल: दिवाली अक्सर अक्टूबर-नवंबर में होती है, जब मौसम ठंडा होना शुरू हो जाता है। ठंडी हवा प्रदूषण के कणों को ऊपर नहीं उठने देती और वे ज़मीन के नज़दीक एक मोटी परत बना लेते हैं, जिसे हम स्मॉग कहते हैं।

स्थानीय प्रदूषण: गाड़ियों का धुआँ, कंस्ट्रक्शन की धूल, और औद्योगिक उत्सर्जन -ये सभी कारन पहले से मौजूद प्रदूषण को और भी ज़्यादा बढ़ा देते हैं।

स्वास्थ्य पर गंभीर असर: अदृश्य दुश्मन (Serious Health Impact: The Invisible Enemy) यह प्रदूषण केवल आँखों में जलन या खाँसी तक सीमित नहीं है। खतरनाक AQI सीधे तौर पर हमारे स्वास्थ्य पर वार करता है:

श्वसन संबंधी समस्याएँ: अस्थमा और ब्रोंकाइटिस के मरीज़ों के लिए यह समय जानलेवा साबित होता है।

हृदय रोग (Heart Diseases): महीन कण रक्तप्रवाह में प्रवेश कर हृदय संबंधी जोखिमों को बढ़ाते हैं।

च्चों और बुज़ुर्गों पर प्रभाव: सबसे कमज़ोर वर्ग (बच्चे, बुज़ुर्ग, गर्भवती महिलाएँ) सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health): लगातार धुंध और खराब हवा का असर निराशा और तनाव के रूप में भी सामने आता है।

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Delhi Pollution: आगे की राह-क्या उम्मीद बाकी है?

इस समस्या का समाधान रातों-रात नहीं हो सकता, लेकिन सामूहिक और दृढ़ प्रयासों से ही बदलाव लाया जा सकता है:

  • सरकारी हस्तक्षेप: पराली जलाने पर सख़्त नियंत्रण, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर भारी जुर्माना और ग्रैप (GRAP) नियमों का समय पर और कठोर कार्यान्वयन।
  • नागरिक ज़िम्मेदारी (Citizen Responsibility): पटाखों का पूरी तरह से बहिष्कार करें। व्यक्तिगत वाहनों का कम उपयोग करें और सार्वजनिक परिवहन या कारपूलिंग को बढ़ावा दें।
  • स्वास्थ्य सुरक्षा: इस अवधि में उच्च गुणवत्ता वाले N95 मास्क का उपयोग करें। घर के अंदर एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें और खिड़कियाँ बंद रखें।
  • जागरूकता फैलाना: सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करके लोगों को प्रदूषण के खतरों के बारे में लगातार जागरूक करें।
निष्कर्ष: Delhi Pollution

दिवाली का अर्थ ‘बुराई पर अच्छाई की जीत’ है। आज, हमारे शहरों को जिस ‘बुराई’ का सामना करना पड़ रहा है, वह प्रदूषण है। अगर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को रोशनी भरा भविष्य देना चाहते हैं, तो हमें इस पर केवल बहस करने के बजाय, एक सामूहिक और स्थायी समाधान की दिशा में काम करना होगा।

चलिए, इस दिवाली के धुएँ को हटाकर, अगले साल की दिवाली तक एक स्वच्छ हवा वाला शहर बनाने का संकल्प लें।

Disclaimer:

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